Sunday, 23 October 2016

रू-ब-रू

दिल जो  जलेगा जिन्दगी भर
इच्छाएं रह जाएगी आँखों में
गूगल इमेज से प्राप्त
खून खोलेगा मजबूरियों पर
दर्द में होगा बदन, और
होकर वास्तविकता से रूबरू
होगा इस सफर का अंत.

मगर देखेंगे कुछ लालची लोग 
सदियों बाद कि
कोनसा खजाना दफन है यहाँ
मिलेगा उनको उनका भविष्य
मिलेंगी अस्थियाँ मेरी
बिना दिल के
बिन आँखों की
बगैर खून के
खोखलेपन के साथ
सोचेंगे, कोई इंसान रहा होगा कभी
मौजूदा हालात में जो हैवान है.




11 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 24 अक्टूबर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल सोमवार (24-10-2016) के चर्चा मंच "हारती रही हर युग में सीता" (चर्चा अंक-2505) पर भी होगी!
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बहुत ख़ूब...कितने गहरे भाव हैं आपकी इस कविता में

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  4. अनुभूति की सच्ची अभिव्यक्ति !

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  5. इस हकीकत को समझ लें तो कुछ नहीं रह जायेगा ...

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  6. बहुत सुन्दर रचना
    शुभ दीपावली !

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  7. सुन्दर रचना

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  8. अच्छा लगा आज आपको देख कर
    पर ब्लॉग में आप नहीं है
    आइए...हमें उम्दा रचनाओं से वंचित न कीजिए
    सादर

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  9. इंसान के भीतर ही तो है प्रेम से भरा दिल..स्वप्नों से सजी आँखें, कुछ करने का जज्बा लिए रगों में दौड़ता रक्त और भुजाओं में हिम्मत..वही तो हँसते-हँसते देश के नाम फांसी के तख्ते पर चढ़ जाता है..ऐसा इन्सान हैवान तो नहीं हो सकता...यदि वह खुद को भीतर झांक के देख ले..

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